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क्या कसूर था आखिर मेरा ? भाग 14



अगली सुबह  दुर्जन गांव के मुखिया  के घर  जाता है । "अरे, दुर्जन तुम आज  यहाँ का रास्ता कैसे भटक  गए " मुखिया  मुरली प्रसाद जी कहते  है। "आओ , आओ  अंदर  आओ  बैठ  कर  बात करते  है। और घर  पर  अम्मा और अंजलि  बेटी केसी है , बहुत  ख़ुशी  हई  जब  अंजलि  बिटिया ने हमरे  गांव का नाम रोशन  किया परीक्षा  में प्रथम  आ  कर। उसे प्रथम  आता  देख  मेरी काव्या बेटी में भी  हौसला जाग उठा  और इस बार वो ग्यारहवीं में दाखिला  लेगी वरना  हाईस्कूल में दो बार फ़ैल  होने के बाद जब  वो तीसरी  बार में पास हुयी तब  उसने पढ़ाई  से मुँह मोड़ लिया था  की जब  हाईस्कूल  में दो बार फ़ैल  होने के बाद वो पास  हुयी तब  बारहवीं में तो शायद  कभी  पास हो ही नही सकती। लेकिन अंजलि  और मंजू  को पास  होता देख  उसे भी  हौसला मिला और अब उसने भी  ग्यारहवीं में दाखिला  ले ही लिया।" मुरली प्रसाद जी कहते  है ।


"बहुत  अच्छा फैसला लिया काव्या बिटिया ने लड़कियों के लिए  पढ़ाई  लिखाई  इतना ही जरूरी  है जितना की चूल्हा चोखा।" दुर्जन कहता  है ।


"और सुनाओ कैसे आना  हुआ आज हमरे  घर  इतने दिनों बाद। "मुरली प्रसाद जी कहते  है

"क्या बताये  मुखिया  जी किसान की ज़िन्दगी तो आपको  पता  ही है  केसी होती है , भोर  होते ही खेत  पर  चले  जाओ और साँझ  होते ही लोट आओ । दिन भर  खेत  पर  लगे  रहो  कभी  खेत  जोतो, तो कभी  बीज  डालो और फिर  पानी दो और उसके बाद आवारा पशुओ  से खेत  की हिफाज़त  करो । नही तो सारी मेहनत  बरबाद  हो जाएगी अगर  उन्होंने फसल  को नुकसान पंहुचा  दिया तो बस  इसी भाग  दौड़ में ज़िन्दगी गुज़र  रही  है ।" दुर्जन कहता  है


"सही  कहा  दुर्जन तुमने किसान की ज़िन्दगी हमेशा  संघर्ष  करते  ही गुज़र  जाती है और हाथ  में सिर्फ मुट्ठी भर  अनाज ही आता  है  जिसे  पूरे  साल चलाना  होता है  नही तो घर  में अकाल पड़  सकता  है । "मुरली प्रसाद कहता  है ।


"मुखिया जी आज  मुझे  यहाँ मेरी मजबूरी  केहलो या फिर  गरीबी  खींच  लायी है। आप  तो जानते ही है  मेरे पास वो थोड़ा  बहुत  ज़मीन  का टुकड़ा ही बचा  है  और एक घर  और उस घर  में मेरी बूढी  माँ और एक जवान  बेटी रहती  है।

बात कुछ  इस प्रकार है  मुखिया  जी की मेरी बेटी अंजलि  का एक रिश्ता आया  है  शहर  से लड़का  सरकारी  शिक्षक  है  और एकलौता बेटा है  उनका, माता पिता भी बहुत  अच्छे है । और तो और वो मंजू  है  ना, अंजलि  की सहेली उसकी सास की बहन  का बेटा है  नाम है, अमित


"यह तो बहुत  अच्छी खबर  सुनाई  तुमने दुर्जन, बेटी तो जितनी जल्दी अपने घर  की हो जाए वो ही अच्छा है  वरना  ज़माने  को तो तुम देख  ही रहे  हो कितना ख़राब  हो चूका  है ।" मुखिया  जी कहते  है 


यही  बात अम्मा कहती  है । लेकिन एक समस्या है  दुर्जन कहता  है 

क्या समस्या है दुर्जन?। मुखिया  पूछता  है 

मुखिया  जी वो लोग  पहले  सगाई  और कुछ  दिन बाद शादी   करना  चाह  रहे  है । मेने तो अभी  अपनी बेटी का दहेज़  भी  इकठ्ठा नही किया है  और ना ही मेरे पास  पैसे है ।ज़मीन  गिरवी रख  दू  तो उसमे फसल  खड़ी  है  ज़मीन  के साथ  साथ  फसल  पर  की मेहनत  भी बेकार हो जाएगी।


मैं इस लिए  ही आपके  पास  आया  हूँ की कुछ  थोड़ा  बहुत  पैसा मिल जाए तो बेटी की सगाई  कर  दू। उसके बाद फसल  बेच  कर  आपके  पैसे लोटा दूंगा । थोड़ा  बहुत  मेरे पास  है पैसा , बीज  खरीदा  था  तो उसमे से ही बच  गए  थे  अगर  थोड़ा  बहुत  आप  देदे तो बिटिया की सगाई  अच्छे से हो जाएगी। दुर्जन हाथ  जोड़ते हुए  कहता  है ।


"अरे,दुर्जन यह क्या कर  रहे  हो, यूं इस तरह  हाथ  जोड़ कर  शर्मिंदा  मत  करो । मैं मुखिया  बाद को हूँ, पहले  तुम्हारा दोस्त हूँ। और अंजलि  मेरी भी  बेटियों की तरह  है । मेरे पास  पांच  हज़ार  रूपये पड़े  है , जो मेने बीज  खरीदने  के लिए  रखे  थे , लेकिन अंजलि  की सगाई  हो जाए अच्छे से वो अच्छा है  मेरे लिए । बीज  खरीदने  के लिए  भगवान  कही  ना कही  से बंदोबस्त  कर  ही देगा। तुम बैठो  चाय  पियो मैं अभी  अंदर  से लाकर  देता हूँ।
मुखिया  कहता  है ।

"बहुत  बहुत  धन्यवाद  मुखिया  जी मदद  करने  के लिए । मुझे  रात नींद  नही आ  रही  थी  इसी वजह  से कि कही  आप  मना  ना करदे  पैसा देने से । "दुर्जन आँखों  में आंसू लिए  कहता  है ।


"भला  ऐसा हो सकता  है  कि एक दोस्त दूसरे  दोस्त की मदद  ना करे। यह गांव है , यहाँ सुख  और दुख  साँझा  होता है । यहाँ एक घर  में कोई परेशानी  होती है  तब  दस  घर  उसकी मदद  को आ  जाते है । तु रुक मैं पैसे लेकर  आता  हूँ। यह कहकर  वो अंदर  चला  जाता है  और पैसे लाकर  दुर्जन को दे देता है।


दुर्जन उसको गले  लगा  कर धन्यवाद  देता और मंजू  के घर  की तरफ  चलता  है 

दुर्जन खुश  था  की पेसो का बंदोबस्त  हो गया  अब उसकी बेटी की सगाई  अच्छे से हो पायेगी।

दुर्जन मंजू  के पिता के घर  जाता है । "अरे दुर्जन आओ , आओ  बैठो  मंजू  के पिता ने कहा , कहो  कैसे आना  हुआ काफ़ी खुश  नज़र  आ  रहे  हो सब  कुशल  मंगल  तो है "


"हा,हा  भगवान  की बड़ी  किर्पा है  मुझ  पर  की घर  बैठे  बेटी का इतना अच्छा रिश्ता मिल गया  और अब देखो  सगाई  के लिए  पेसो का बंदोबस्त  भी  हो गया  "दुर्जन कहता  है ।

"यह तो ख़ुशी  की बात है । बेटी को अच्छा ससुराल  मिल जाए और माँ बाप को क्या चाहिए  होता है । "मंजू  के पिता कहते  है ।

"बस  इसी लिए  आया  हूँ की तू मंजू  बेटी को संदेसा  भेज  दे की हम  लोग तैयार है  सगाई  के लिए  और शादी  की बात सगाई  में ही कर लेंगे। " दुर्जन कहता  है 

"यह तो अच्छा फैसला लिया तुमने देखना  अंजलि  बेटी राज करेगी । और पेसो का बंदोबस्त कैसे किया, मैं भी  अभी  तुम्हारी कोई मदद  नही कर  सकता  अभी  तो मुझ  पर  ही काफी कर्जा चढ़  गया  है  जिसे उतारने में कम  से कम  दो साल लग  जाएंगे तब  दूसरी  बेटी जवान  हो जाएगी, वैसे दामाद जी ने दहेज़  लेने से मना  कर  दिया था  लेकिन बेटी को खाली  हाथ  तो विदा नही कर  सकते  थे। माना ससुराल  वाले अच्छे है , लेकिन आस  पास वाले तो ज़ालिम है ,जो कभी  ना कभी  इस बात को रख  देते की लल्ला की बहु  अपने साथ  कुछ  लायी ना थी। बस  उसी दिन से उसको ताने मिलने लगते  इसी वजह  से मेने अपनी आधी  ज़मीन  साहूकार के पास  गिरवी रख  दी ताकि मेरी बेटी की डोली इज़्ज़त से उठ  सके  और ससुराल  में भी  उसे कोई परेशानी  ना देखनी  पड़े  हमारी  वजह  से।" मंजू  के पिता कहते  है 


"सही  कहा  तुमने। इसी लिए  मेने अभी  मुखिया  जी से कुछ  पैसे उधार  लिए  है  ताकि दामाद जी के लिए  एक अच्छी सी अंगूठी  खरीद  सकूँ और कुछ  अच्छा जलपान  करा  सकूँ। "दुर्जन कहता  है  और वहा  से चला  जाता है 




घर  आकर  वो अपनी माँ को बताता  की पेसो का बंदोबस्त  हो गया  है  और संदेसा  भी  भिजवा  दिया है  अब देखो  कब  मंजू  का पिता हमारे  घर  आ  जाए उनका संदेसा  लेकर ।

यह सुन दादी खुश  होती है । किर्पा है, भगवान  की जो इस घर  में भी  खुशियाँ  आयी ।

अंजलि  अपनी सगाई  की खबर  सुन कर  बहुत  खुश  होती है, वो अमित को बताना  चाहती  थी  लेकिन बता  ना सकती  थी  क्यूंकि उसके पास  मोबाइल ना था । वो आयने  के सामने खड़ी  खुद  को निहारती और शर्माती  उसे यकीन  नही आ  रहा  था। की उसकी सगाई  उसके पसंद  के लड़के  से हो रही  है ।


वही  दूसरी  तरफ  अमित इंतज़ार  में था  की कब  संदेसा  आये  तभी  मंजू  वहा  आती  और बताती  की दुर्जन काका सुबह   पिताजी के पास  आये  थे  संदेसा  लेकर  की,,,,,

क्या भाभी ? क्या संदेसा  दिया अंकल  ने? अमित ने उदास चेहरे  से पूछा 

हा बहु  क्या कहा ? तुम्हारे दुर्जन काका ने अमित की माँ ने पूछा 


मौसी  जी बात यह है  की,,,,,,,,,,, अंजलि  के पिता मान गए  अंजलि  की सगाई  और कुछ  दिन बाद शादी  को। यह कहकर  मंजू  बहुत  खुश  हुयी उसने अपनी सास को गले  लगा  लिया वो भूल  गयी  थी  की वो अब ससुराल  में है।

माफ कर  दीजिये मम्मी जी, बात ही ऐसी थी  की में अपनी ख़ुशी  अपने अंदर  रख  ना सकी  मंजू  डरते  हुए  कहती  है ।

कोई बात नही बहु  अगली बार याद रखना  की तुम अब शादी  शुदा  हो, कोई कुवारी  लड़की  नही। उसकी सास ने कहा।

जी मम्मी जी आगे  से याद रखूंगी । मंजू  ने कहा 

अमित की ख़ुशी  का ठिकाना  ना रहा  यह खबर  सुन कर  वो अपनी माँ को गले  लगाता  और कहता  माँ आप  अभी  भाभी  के पिताजी को फ़ोन  करके  बता  दे की हम  लोग रविवार  को आ  रहे  है  सगाई  के लिए।

बेटा थोड़ा  सब्र रखो , तुम तो उतावले हुए  जा रहे  हो शादी  के लिए  अमित के पिता ने कहा 

यह सुन अमित शर्मा  जाता है  और बात को घुमाने  की कोशिश  करता  है 

अब घुमा  मत  बात को मेरे भाई  अब जब  औखल  में सिर दे ही दिया है, तो मुसल  से क्या डरना  राकेश  हस्ते हुए  कहता। उसकी इस बात पर  सब  लोग टाहाका मार के ज़ोर से हस्ते।

बेटा अब रात हो गयी  है , सब  सो गए  होंगे मैं सुबह  संदेसा  भिजवा  दूँगी  बहु  के पिता को। अमित की माँ कहती  है 

 जैसा आप  को ठीक  लगे  माँ। अमित कहता  और अपने कमरे  में चला  जाता है 

अमित भी  अंजलि  को बताना  चाहता  था , की वो लोग आ  रहे है  अगले रविवार  सगाई  के लिए । अमित अंजलि  का फोटो अपने पर्स  से निकाल कर  उससे प्यार भरी  बाते करता  है ।


उधर  अंजलि  भी  अमित के फोटो  को देख  कर  उससे बाते करती  और देखते  ही देखते  दोनों नींद  की आगोश  में चले  जाते है।


अगली सुबह  नया  दिन अंजलि  के लिए ।

दरवाज़े  पर  किसी की दस्तक  होती है । दुर्जन दरवाज़ा खोलता  तो देखता  मंजू  के पिता कांधे  पर  हल  लिए  खड़े  थे ।


अरे अंदर  आओ , कहा  जा रहे  हो दुर्जन ने कहा 

राम, राम अम्मा केसी हो, मंजू  के पिता ने पूछा 

बेटा ठीक  हूँ, तुम सुनाओ इतनी सुबह कैसे आना  हुआ, दादी ने पूछा

क्या बताऊ  अम्मा? बात ही ऐसी है, वो कल  संदेसा  भेजा  था  ना दुर्जन ने अपनी अंजलि  बिटिया की सगाई  का तो उसी का जवाब  लेकर आया  हूँ, सुबह  मंजू  बिटिया का फ़ोन  आया  था। मंजू  के पिता ने कहा 

अच्छा संदेसा  है ना, कोन्हो परेशानी  की बात तो ना है ना। दुर्जन ने घबराते  हुए  कहा 


नाही एसो कोन्हो बात नही है , इ तो ख़ुशी  की खबर  है । आ  रहे  है  वो लोग अगले रविवार  अंजलि  बिटिया की सगाई  करन वास्ते। तैयारी करले  दुर्जन अब तेरा भी  वक़त  नजदीक  आ  गया  बिटिया के कन्यादान का फर्ज़ अदा करने  का।मंजू  के पिता दुर्जन को गले  लगा  कर  कहते  है 


यह सुन दुर्जन की आँखों  से ख़ुशी  के आंसू  बहने  लगते .


अंदर  अंजलि  भी  अपनी सगाई  की बात सुन कर ख़ुशी  के साथ  साथ  उदास भी  हो जाती है ।





अंजली अपनी सगाई  की बात सुन कर  खुश हो जाती है । तभी  उसे याद आता  है ,कि अब वो भी  मंजू  की तरह  अपने घर  वालो को छोड़  कर  ससुराल  चली  जाएगी ये सोच  कर  वो उदास हो जाती है।


दुर्जन, पैसे लेकर  सुनार के पास  जाता और अच्छी सी सोने की अंगूठी  खरीदता  है  अमित के लिए । उसी के साथ  साथ  वो और तैयारी भी  करता  है जलपान  की।


अमित के घर  भी  तैयारी चल  रही  होती है, वो भी  अंगूठी  खरीदते  है  अमित के पसंद  की। अमित एक एक  एक कर  के दिन गिन रहा  होता है 

उधर  अंजली  भी  सगाई  के दिन का बेसब्री से इंतज़ार  करती  है। और अपने पिता के साथ  मिलकर  सारे घर  की सफाई  करती  है ।

दादी भी  खुश  होती अंजली  से, उसे घर  का काम करते  देख  और अपने पिता का हाथ  बाटता देख।

देखते  देखते  दिन गुज़र  गए  और सगाई  से पहले  की रात आ  गयी। अंजली  बहुत  डरी  हुयी थी  सोच  सोच  कर  की ना जाने कल  क्या होगा, अब तो मंजू  भी  नही थी  कि उससे दिलजोई कर  अपने दिल की बात बता  देती।

आज  उसे अपनी माँ की बहुत  याद आती , वो कहती  माँ आज अगर  आप  ज़िंदा होती तो मैं आपसे अपने दिल की बात कहती  क्यूंकि माये भी  तो बेटियों की सहेली  होती है । जिसे अपनी बेटी के हर  सुख  और दुख  का पहले  से पता  चल  जाता है । मेने तो सुना है  कि माये तो बच्चों की आँखे  देख  कर  बता  देती है  की उसके दिल और दिमाग़ में क्या चल  रहा  है ।


काश ! आज  तुम यहाँ मेरे पास होती तो मैं बताती  कि मैं कितनी घबराई  हुयी हूँ। भगवान  जाने कल  क्या होगा। अंजली  इसी तरह  अपनी माँ  की यादो से बाते करते  करते  सो जाती है ।


अमित भी  सुबह  का इंतज़ार  करता  है । वो अंजली  के फोटो  को बार बार देखता  और उससे बाते करता। ना जाने केसी कशिश  है  तुम्हारे अंदर  की बार बार देखने  को जी  करता  है , भगवान  ने खुद अपने हाथ  से बनाया  है  तुम्हे लगता  है । बहुत  किस्मत वाला हूँ, मैं जिसकी तुम जैसी पत्नि होगी। अमित इसी तरह  फोटो  से बाते करते  करते  सो जाता है ।


अगली सुबह, अंजली  तू  बहुत  जल्दी उठ  गयी  आज  दादी ने कहा।

जी दादी, मेरी आँख  खुल  गयी  थी  जल्दी और फिर  मुझे  नींद  नही आयी । अंजली  कहती  है 

होता है, होता है   बेटा ऐसा ही होता है । आज  तेरी ज़िन्दगी का एक मेहत्वपूर्ण दिन है। आज  की सगाई  के बाद तू  उनकी हमारे  पास रखी  अमानत  होगी जिसे वो जब  चाहे  ले जा सकते  है  हमारे  पास  से। दादी कहती  है 


अरे अम्मा, डराओ  मत  मेरी बेटी को वो तो वैसे ही डरी  हुयी है । दुर्जन कहता  है 

बेटा अंजली,नहा  धोकर  तैयार हो जाओ और नाश्ता करलो , फिर  मंदिर  चलेंगे    भगवान  शिव  और माता पार्वती का आशीर्वाद  लेने ताकि तेरी जोड़ी भी  शिव  पार्वती जैसी हो और साथ  में बड़े  पंडित  जी से भी  आशीर्वाद  ले लेंगे। दुर्जन कहता  हुआ रसोई  में चला  जाता है।


दादी क्या आप  भी  चलेगी  हमारे  साथ ? अंजली  ने पूछा 

ना बेटा अम्मा नही जाएगी, पता  तो है  घुटनो  की मरीज़  है  और मंदिर  में सौ सीढ़िया  चढ़ना आसान  ना होगा अम्मा के लिए। प्रसाद लेते आएंगे  अम्मा के लिए । दुर्जन रसोई  से कहता  है 

ठीक  है  पिताजी,  मैं  अभी  तैयार हो कर  आती  हूँ। अंजली  ने कहा  और कमरे  में चली  जाती। थोड़ी  देर बाद अंजली  और दुर्जन मंदिर  के लिए  चले  जाते है ।


पंडित   जी मेरी बेटी को आशीर्वाद  दीजिये क्यूंकि इसकी आज  सगाई  होने जा रही  है , ताकि ये अपने ससुराल  में खुश  रहे  और इसकी जोड़ी भगवान  शिव  और माता पार्वती जैसी बनी  रहे । दुर्जन कहता  है 


जीती  रहो  बालिके, महादेव  सदैव  तुम्हारी रक्षा  करे । पंडित  जी ने प्रसाद देते हुए  कहा ।

उसके बाद अंजली अपने पिता के साथ  घर  की और चलने  लगती । तभी  उसे छोटी  लड़किया  जो की खेल  कूद  कर  रही  थी। तभी  उसे अपना और मंजू  का बचपन  याद आ गया  वो भी  ऐसे ही दिन भर  गांव में क्रीड़ा करती  रहती  थी ।

बेटा अंजली  तुम खुश  तो हो। दुर्जन ने अंजली  के सिर पर  हाथ  फेरते  हुए  कहा । बेटा ज़िन्दगी और मौत  का कुछ  पता  नही कब  आ  जाये, इसलिए मैं चाह  रहा हूँ की अपनी आँखों  के सामने तुम्हे डोली में बैठा  देख  सकूँ, तुम मुझ  पर  कोई बोझ  नही हो मैं तो तुमको पढ़ाना  चाहता  था  और कुछ  बनता  देखना  चाह  रहा  था । लेकिन अमित एक अच्छा सुलझा  और समझदार  लड़का  लगा  मुझे  और तुम्हारे काबिल भी  और तो और वो तुम्हे आगे  पढ़ने  की इज़ाज़त  भी दे देगा। भगवान  ने चाहा  तो वो एक अच्छा जीवन  साथी  साबित होगा। बस  इसी लिए  मेने हाँ कह  दी। क्यूंकि औरत  को औरत  समझने  वाले मर्द बहुत  कम  है  इस समाझ  में बाकी सब  तो औरत  का मेहत्त्व ही नही जानते कुछ  बोझ  समझते  है  तो कुछ  पैर की जूती । लेकिन अमित मुझे  औरत  की इज़्ज़त करने  वाला लगा । उसने अपनी माँ को तुम्हारा हाथ  मांगने भेजा  जो की बताता  है  की वो एक संस्कारी  लड़का  है ।


जी पिताजी मुझे  कोई आपत्ति  नही है  इस रिश्ते में और मैं खुश  भी  हूँ। लेकिन मुझे  आपको  छोड़  के जाने का दुख  है  की मेरे जाने के बाद आपका और दादी का कौन ध्यान रखेगा  बस  यही  चिंता  मुझे  सता  रही  है । अंजली  दुखी  हिर्दय से कहती  है ।

बेटी तुम्हे अपने ससुराल  में हस्ता बस्ता देख  जो ख़ुशी  मुझे  और तुम्हारी दादी को होगी उसी के सहारे  हम  अपनी बाकी की ज़िन्दगी काट लेंगे। दुर्जन कहता  है 

चलो  अच्छा अब आंसू  पोछ  लो और जल्दी जल्दी घर  चलो  शाम  की तैयारी भी  करना  है । दुर्जन अंजली  के आंसू  साफ करते  हुए  कहता  है ।

उसके बाद वो दोनों घर  आकर , शाम  की सगाई  की तैयारी में लग  जाते है 

उधर  अमित भी सोकर  उठ  जाता और समय  देखता  तो बिस्तर से उठ  खड़ा  होता। हे! भगवान  बारह बज  गए  दोपहर  के किसी ने जगाया  नही मुझे  क्या हुआ कही  सब  मुझे  छोड़  कर  सगाई  के लिए  निकल  तो नही गए ।

राकेश , भाभी , माँ, मौसी  जी कहा  है आप  सब  लोग। अमित ने ज़ोरदार आवाज़  में कहा 

क्या हुआ बेटा क्यू चिल्ला रहे  हो? राकेश  के पिता ने कहा 

अरे मौसा जी आप  सुप्रभात । अमित ने कहा 

बेटा जी सगाई  की ख़ुशी  में सब  भूल  बैठे  हो क्या? सुप्रभात नही दोपहर  हो चली  हे । यही  हाल होता हे  जवानी  की मोहब्बत  में इंसान सब  कुछ  भूल  बैठता  हे ।

अमित शर्मा  कर  कहता  हे । नही नही मौसा जी ऐसा कुछ  नही हे  बस  राकेश  की शादी  की थकान  अभी  तक  नही उतरी हे  इसी वजह  से पता  नही चला  की कब  सुबह हो गयी  और कब  दोपहर 

बेटा जी ये शादी  की थकान  नही, ये मोहब्बत  का भूत  हे  जो रात को तुम्हे उसी की याद में जगाये  रखता  हे , मैं गुज़रा था  रात तुम्हारे कमरे  की तरफ  से जब  तुम फोटो  से बाते कर  रहे  थे । मौसा जी कहते  हे


अमित शर्मा  कर  निकलने  की कोशिश  करता , तभी  राकेश  वहा  आ  जाता और कहता  क्या पिताजी आप  इसकी टांग क्यू खींच  रहे  हे ?पता  हे  ना कितना डरपोक  हे  ये मोहब्बत  करता  हे  लेकिन जब  मोहब्बत की बात होती हे तो शर्मा  जाता हे  बेचारा ।

अमित, राकेश  की तरफ  घूरता  हे ।

राकेश  और उसके पिता हसने  लगते  हे । अमित को देख  कर । घबराओं  मत  बेटा तुम्हे लेकर  ही जाएंगे सगाई  में तुम्हारे बिना थोड़ी  होगी सगाई । तुम्हारी माँ, और मौसी  और भाभी  बाजार गए  हे  कुछ  खरीदारी  करने  आते  ही होंगे चलो  तुम भी  नहा  धो  लो फिर  खाना  खाते  हे  साथ  में। मौसा  ने कहा 

चल  में तुझे  कमरे  तक  छोड़  आऊ। राकेश  हस्ते हुए  कहता  हे । तुझसे  तो में सगाई  के बाद निपटूगा देख  भाभी  को बताऊंगा  तेरी गर्लफ्रेंड के बारे में अमित कहता  हे


अरे भाई , भाई  तलाक  करवाएगा  क्या?  शादी  के कुछ  दिन बाद ही, भाई  हे  या कसाई । मंजू  को बता  मत  देना रिया के बारे में, वैसे भी  रिया मेरी दोस्त थी  और मंजू  मेरी पत्नि। राकेश  कहता  हे 

एक बार बता  कर  देख  भाभी  को पता  चल  जाएगा की जब  मेहबूबा  पत्नि बन  जाती हे  तो और भी  विकराल रूप  धारण  कर  लेती हे। अमित हस्ते हुए  अपने कमरे  के वाशरूम  में चला  जाता हे ।

भाई  भगवान के लिए  अपना मुँह बंद  रखना  रिया का चैप्टर  डिलीट  कर  दे अपने दिमाग़ से मैं भी  उसे भूल  चूका  हूँ। वैसे भी उसकी अब शादी  हो गयी  हे  और वो मुंबई  चली  गयी  हे , रमन  ने बताया  था  मुझे। राकेश  कहता  हे 


ठीक हे  नही बताऊंगा  लेकिन अब मेरी मोहब्बत  का सबके  सामने मज़ाक  बनाया  तो फिर  याद रखना। अमित वाशरूम  से कहता  हे ।

राकेश  वहा  से चला  जाता हे  मन  ही मन  कुछ  बड़बड़ाते  हुए । आज  उसके चेहरे  पर  पत्नि का खौफ  नज़र  आ  रहा  होता हे।


इसी तरह  दोपहर  से शाम  हो जाती हे  और सब  लोग तैयार हो कर  अंजली  के घर  के लिए  निकल  पड़ते  हे।
नज़र  ना लगे  मेरे बेटे को एक दम  हीरो लग  रहा  हे  इस चूढ़ी दार कुर्ते पायजामे में।

अमित की माँ ने, अपनी आँख  का काजल  निकाल कर  उसके कान के पीछे  लगाते  हुए  कहा।

बस  माँ कितना काला टीका  लगाओगी , अमित ने कहा

बेटा माँ हूँ ना इसलिए  ज्यादा चिंतित  रहती  हूँ अपनी औलाद  के लिए ।

रहने  दो दीदी इन नालायको को क्या पता  माँ क्या होती हे । माँ के लिए  तो बच्चे  बड़े  होने के बाद भी  छोटे  ही रहते  हे और शादी  के बाद भी  माँ का प्यार औलाद  के प्रति कम  नही होता फिर  भी  वो औलाद  के बारे में ही चिंतित  रहती  हे ।

ओह मौसी  आप  तो इमोशनल  हो गयी । मेरा वो मतलब  थोड़ी  था  मैं तो बस ,,,,,, वैसे ही कह  रहा  था । अमित कहता  हे 

चलो  अब बहुत  देर हो रही  हे  चलने  को अमित के पिता ने कहा ।

और सब  लोग अंजली  के घर आ  पहुचे ।

अंजली  के पिता ने काफी अच्छा इंतजाम  किया था  अपनी बेटी की सगाई  के लिए ।

मंजू  भागती  हुयी अंजली के कमरे  में जाती और उसे पीछे  से दबोच  कर  कहती । ओह मेरी प्यारी दोस्त मैं तेरे लिए बहुत  ज्यादा खुश  हूँ  कि लफ्ज़ो में बयान  नही कर  सकती।

मंजू  की बच्ची  मुझे  नीचे  उतार कही  कोई देख  ना ले। अंजली  कहती  हे 

ओह हो। मेरी सहेली  तो समझदार  हो गयी  मेरे जाते ही मंजू  कहती  हे ।

चल  अब गले  लग  जा मेरे तुझसे  बहुत  सारी बाते करनी  हे  लेकिन समझ  नही आ  रहा  कहा  से शुरू  करू । मंजू  अंजली  के सीने  से लग  कर  कहती  हे ।

मुझे  बहुत  ख़ुशी  हे  कि काका तेरी सगाई  और शादी  को लेकर  मान गए , और तुझे  भी  वही  दूल्हा मिला जो तेरी पसंद का था । मंजू  कहती  हे 

हलके  बोल मेरी बहन , किसी ने सुन लिया कि मैं अमित को पहले  से जानती हूँ तो खामखा  बवाल  हो जाएगा। अंजली  कहती  हे।

अच्छा ये बता  अमित केसा लग  रहा  हे ,  अंजली  शरमा  कर  पूछती  हे 

बस  ठीक  ही लग  रहा  है। मंजू  ने मज़ा  लेते हुए  कहा 
लेकिन मेरी दोस्त ज्यादा अच्छी लगेगी  उसके सामने।

चल  झूठी । अंजली  कहती  हे 

तभी  दरवाज़े  पर  अमित कि माँ आती  हे ।

अंजली  उन्हें नमस्ते कर  पैर छूती। जीती  रहो  अमित की माँ ने कहा ।

बहु  ज़रा  ये साड़ी अंजली  को पहना  दो उसपर  ये लाल रंग  खूब  जमेगा । अमित की माँ ने मंजू  से कहा  और साड़ी देकर  वो वहा  से चली  जाती हे ।

बहुत  ही सुन्दर साड़ी हे , ज़रूर अमित ने पसंद  की होगी मंजू  कहती  हे। अमित की पसंद  बहुत  अच्छी हे 

उसके बाद मंजू  अंजली  का श्रृंगार करती  जिसके बाद वो और खूबसूरत  लगने  लगती ।

किसी की नज़र  ना लगे  इस चाँद  से चेहरे  को। मंजू  ने अपनी आँख  का काजल  अंजली  के कान के पीछे  लगाते  हुए  कहा।

अंजली  का पिता मेहमानों की खातिरदारी  में लगा  होता हे । या फिर  यूं कहे   कि वो अपनी बेटी की जुदाई  के गम  को काम के जरये   छिपा  रहा  था ।

मंजू , अंजली  को बाहर  ले आओ  सगाई  का मुहूर्त निकल  रहा  हे । अंजली  की दादी ने कहा 

जी दादी अभी लाती हूँ। मंजू  ने कहा 

और वो उसे कमरे  से निकाल कर  बाहर  ले आती  हे । उसे कमरे  से निकलता  देख  अमित उसे देखता  ही रह  जाता। बस कर  भाई  तेरी ही हे  वो ऐसे घूरना  बंद  कर  पास बैठे  राकेश  ने अमित के कान में कहा  तब  कही  अमित ने अपनी निगाहेँ नीची  करी।

बहुत  ही प्यारी बहु  ढूंढी  दीदी आपने  मंजू  की सास ने कहा ।

हा ये तो सब  भगवान  के खेल  हे  वही  जोड़ी बनाता  हे  आसमानो  पर  और ज़मीन  पर  मिल जाते हे । मेरे अमित की जोड़ी, अंजली  के साथ  बनायीं थी  भगवान  ने तो देखो  जुड़ ही गयी  आज । अमित की माँ ने कहा

बहन  जी मुहूर्त का समय  निकले जा रहा  हे  क्यू ना रस्म करले  बाते तो बाद में भी  होती रहेंगी। पंडित  जी ने कहा 

उसके बाद अमित ने अंजली  का हाथ  थाम कर  उसमे अपने नाम की अंगूठी  पहना  दी। सब  ने तालिया बजायी । अमित के होंठ अंजली  से बहुत  कुछ  कहना  चाह  रहे  थे  लेकिन वो कह  नही पा रहा  था  जबकि  उसकी आँखे  सब  बयान  कर  रही  थी।

अंजली  ने भी  उसके हाथ  में, अपने नाम की अंगूठी  पहना  दी सब  लोग खुश  थे  लेकिन दुर्जन के चेहरे  पर  एक अजीब  सी ख़ामोशी  थी  जिसे सिर्फ इतने लोगो में अंजली  ही पढ़  पा रही  होती हे ।


सब  लोग एक दूसरे  का मुँह मीठा  करते  हे ।

मंजू  बेटा अपनी दोस्त और जीजू  को बाहर  बैठा  दो ये दोनों भी  तो आपस  में एक दूसरे  की तारीफ  करदे  कब  से हम  लोग ही करे  जा रहे  हे । मंजू  के ससुर  ने कहा ।

जी पापा जी.। मंजू  कहती  और उन दोनों को बाहर  ले जाती आँगन  में.







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4 Comments

Shnaya

07-Apr-2022 12:19 PM

Very nice👌

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Seyad faizul murad

01-Apr-2022 08:35 AM

Very nice

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Anam ansari

31-Mar-2022 01:49 PM

Nice

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